
धानापुर-चन्दौली।। क्षेत्र के आवाजापुर गाँव निवासी रामजी यादव विगत तीन वर्षो से खुले आसमान के नीचे परिवार संग जीवन जीने को मजबूर हैं l गाँव से 2 किलोमीटर दूर सिवान में अपने पुर्वजो द्वारा बनाये गये कच्चे मकान ( पाही ) पर ही रहने की विवशता मानो उनके जीवन की नीयती बन चुकी है। जन्म भी वही पर पैतृक कच्चा मे हुआ और अंतिम सांस भी लगता है यहीं लेंगे! भाइयों में आपसी बटवारे के बाद रामजी को कच्चे मकान में दो कोठरी मिली थी, जो बीतते वक़्त के साथ जमींदोज होती चली गयी। बटवारे के बाद रामजी के दूसरे भाई जहा-तहा अपना रहने योग्य मकान बना लिये लेकिन रामजी की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर होने के कारण उस निर्जन स्थान पर रहना मजबूरी बन गयी। पैतृक बटवारे मे मिली 22 बिस्से जमीन से ही खेती कर अपने परिवार का भरण पोषण करने वाले रामजी का कहना है कि जब मेरा मकान जर्जर हो चुका था तभी से सरकारी मदद के लिये ग्राम प्रधान, लेखपाल व खण्ड विकास कार्यालय से एक आवास के लिये गुहार लगाता रहा लेकिन सिवा आश्वासन के कुछ नही मिला।
विगत तीन साल पहले बरसात के सीजन मे जर्जर मकान जब पूरी तरह से जमींदोज हो गया तो तहसील दिवस पर जाकर एक निर्बल आवास के लिये सम्बन्धित अधिकारियों को पत्रक दिया लेकिन आज तक मदद के नाम पर न कोई आया और ना ही कोई सहायता मिली l इस सन्दर्भ मे ग्राम प्रधान रिंकू खरवार का कहना है कि आवास के लियेे प्रयास हो रहा है। अब रामजी के हालत ऐसे हैं कि विकास और आवास के नाम पर ढाक के तीन पात के सिवा कुछ भी नहीं! फरियाद तो रामजी हमेशा ही करते हैं मगर हाकिम लोग जब सुने तो न! यूँ तो आवास के नाम पर न जाने कितनों ने अपनी जेबें भारी कर ली होंगी? हुकूमत भी आएदिन दीन हीन को सर छुपाने के लिए न जाने कितने वादे और दावे करती आई है? बहुतों को मिला भी होगा मगर बहुत लोग आशियाने से महरूम भी हैं। अब देखना है कि रामजी को कब सर ढकने का इंतजाम हुकूमत की तरफ से हो पाता है या यूं ही खुले आसमान के नीचे जहरीले जीव-जंतुओं के बीच रामजी बसेरा करते रहेंगे?