- शाहबानो प्रकरण में वोट की राजनीति को प्राथमिकता देते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने देश की सर्वोच्च अदालत को औंधे मुंह पटकनी दिया था!
- वोट की राजनीति को ही प्राथमिकता देते हुए वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी एस सी/एसटी प्रकरण में उच्चतम न्यायालय को चारों खाने चित्त कर दिया!
डॉ0 अशोक कुमार मिश्र 'विद्रोही'
लोकतंत्र में जनमत का बल सर्वोपरी! क्या इस जनबल में शामिल गैर एससी/एसटी सांसदों को मुंह खोलने का भी अधिकार नहीं था या इनकी चेतना और नैसर्गिक न्याय गिरोहबंद सियासी कॉकस का गुलाम बन चुका है?क्या अब भारत देश और उसकी बहुसंख्यक जनता संविधान के बजाय चुनावो में ज्यादा नम्बर पाने वाले जनप्रतिनिधियों की रैयत बन चुकी है? इन गिरोहबंद सांसदों ने अपनी सुविधा को जनहित से अधिक महत्व देते हुए सदन और संविधान को बंधक बना लिया है? अगर यह सच है तो वह दिन दूर नही जब वर्ग और जातीय संघर्षो के कारण माँ भारती का आँचल तप्त हो जाएगा? कानून व्यवस्था मौलिक नहीं किताबो के पन्नों की शोभा बन जाएगी, क्या ये हुक्मरान नहीं जानते है कि जितने भी एक पक्षीय कानून इनके द्वारा सत्ता की लार से अवाम पर चिपकाये गए हैं वही कानून एकांगी उत्पीड़न के कारक बन चुके है, सत्ता सुंदरी के इश्क में इनके हवश की शिकार आज बहुसंख्य आबादी मौलिक रूप से गुलामों से भी बदतर जिंदगी जीने को अभिशप्त कर दी गयी है। आज आरक्षण के कुटिल पाश में सवर्ण प्रतिभा लहूलुहान होकर नित्य प्रति दम तोड़ रही है। आज चाहे दहेज उत्पीड़न हो,महिला सुरक्षा अधिनियम हो, चाहे एससी/एसटी एक्ट हो, चाहे 370 या अन्यान्य एक्ट हों सब के सब किसी न किसी वर्ग, सम्प्रदाय व्यक्ति, समूह, समुदाय को नित्य प्रति रक्त रंजित कर रहे हैं, यह कौन सा संविधान है जो एक को उठाये, महफूज रखे, बहबूदी दे तो दूसरे को गिराए, असुरक्षित करे, बर्बाद कर? कहाँ गये संविधान प्रदत्त नागरिक अधिकार और उनकी मौलिक आज़ादी?कोई मुस्लिमों का हिमायती तो कोई हिंदुओ का हिमायती, कोई घुसपैठियों का हिमायती तो कोई जातियों का हिमायती! आज अपने ही देश का नागरिक इन सत्ता लोलुपो की घिनौनी चाल का शिकार हो संविधान प्रदत्त आज़ादी, समान अवसर से महरूम हो चुका है कोई कहता है देश बदल रहा है तो कोई कहता है देश के संसाधनों पर एक खास वर्ग का पहला हक है। कोई कहता है हिन्दू तालिबान तो कोई कहता है हिन्दू पाकिस्तान तो कोई कहता है भगवा आतंकवाद? क्या यह बयान देने वाले इसी माँ भारती की संतानें है? अगर हैं तो फिर कल के अंग्रेज़ो और आज के भरतीय नेताओ में फर्क क्या है? अंग्रेज भी अंततः अपनी सत्ता बचने वास्ते "फूट डालो राज करो" कि कुटिल नीति अपनाये और ये भी उसी पगडंडी पर सरपट दौड़ रहे हैं!
अगर संविधान और न्यायालय हम भारतीयों को समान अवसर और मौलिक आज़ादी प्रदान करता है तो फिर ये नेता कौन होते है हमारे सम्बिधान और न्यायालय को अंगूठा दिखाने वाले। सम्बिधान ने देश के प्रत्येक नागरिक को आजादी पूर्वक, समान अवसर के साथ जीने का माहौल प्रदान करने तथा निर्विघ्न रूप से रोटी कपड़ा मकान शिक्षा और स्वास्थ्य उपलबद्ध कराने का दायित्व दिया है केंद्र और प्रदेश की सरकारों को किन्तु ये बेशर्म हुक्मरान जब ऐसा नही कर पाते तो संविधान को ही रौंदने का महा पाप करने में गुरेज नही करते। ऐसा करते हुये यह भूल जाते है कि जिस हुकूमत में कभी सूर्यास्त नहीं होता था उसके सूर्योदय को भी फूट डालो राज करो कि रणनीति नही बचा पायी तो ये किस खेत की मूली हैं?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। लेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)