यह सच है कि इन आंकड़ों के अधीन मौजूदा एनडीए सरकार की वृद्घि दर यूपीए सरकार के पहले या दूसरे कार्यकाल की वृद्घि दर के आसपास भी नहीं पहुंच पा रही।
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राहुल लाल |
सरकारें डबल डिजिट ग्रोथ का लक्ष्य निर्धारित करती रही हैं,लेकिन देश ने 2006-07 में ही इस लक्ष्य को प्राप्त कर लिया था।राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग ने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और सकल मूल्यवर्धन (जीवीए)के आकलन के नए स्वरूप की बैक सीरीज विकसित करने के लिए जो समिति बनाई थी, उसने गत सप्ताह अपना आकलन सार्वजनिक कर दिया।
नए आँकड़ों के अनुसार मनमोहन सरकार के कार्यकाल में 2006-07 के दौरान जीडीपी की वृद्ध दर 10.08 तक पहुँच गई थी,जो 1991 में उदारीकरण शुरु होने के बाद जीडीपी वृद्धि दर सर्वोच्च आँकड़ा है।आजादी के बाद देखा जाए तो सर्वाधिक 10.2% आर्थिक वृद्धि दर 1988-89 में राजीव गाँधी सरकार में रही है।
आंकड़े जारी होने के बाद से ही केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने इससे दूरी बना ली है। उसका कहना है कि इन्हें अभी स्वीकृत नहीं किया गया है। नई सीरीज के तहत 2004-05 के बजाए 2011-12 को आधार वर्ष माना गया है।साथ ही अब फैक्टर कॉस्ट के बजाए मार्केट प्राइस को आधार माना जाता है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के द्वारा गठित समिति "कमेटी ऑफ रीयल सेक्टर स्टैटिक्स' के रिपोर्ट में पुरानी सीरीज (2004-05) और नई सीरीज 2011-12 की कीमतों पर आधारित वृद्धि दर की तुलना की गई है।पुरानी सीरीज 2004-05 के तहत जीडीपी की वृद्धि दर स्थित मूल्य पर 2006-07 में 9.57% रही,जबकि नई सीरीज (2011-12) के तहत यह वृद्धि दर संशोधित होकर 10.08% रहने की बात कही गई है।
यह सच है कि इन आंकड़ों के अधीन मौजूदा एनडीए सरकार की वृद्घि दर यूपीए सरकार के पहले या दूसरे कार्यकाल की वृद्घि दर के आसपास भी नहीं पहुंच पा रही। मोटे तौर पर कहें तो इन आंकड़ों से देश की अर्थव्यवस्था के ढांचागत रुझानों में कोई बदलाव आता नहीं दिखता। बैक सीरीज के मुताबिक बाजार मूल्य पर देश की जीडीपी वृद्घि का आकलन करें तो इसने वर्ष 2007-08 और उसके बाद 2010-11 में दो बार दो अंकों का स्तर छुआ।
मोटे तौर पर रुझान पहले जैसा ही है। वर्ष 2000 के मध्य में आई तेजी, उसके बाद वर्ष 2008-09 में वैश्विक वित्तीय संकट के बाद तेज गिरावट आई। जीडीपी वृद्घि दर वर्ष 2007-08 के 9.3 फीसदी से गिरकर संकट वाले वर्ष में 6.7 प्रतिशत रह गई। बहरहाल उस वर्ष सार्वजनिक व्यय में इजाफे और सब्सिडी की बदौलत तेजी से सुधार देखने को मिला। इस प्रोत्साहन की बदौलत संप्रग सरकार के दूसरे कार्यकाल के शुरुआती वर्षों में एक बार फिर अर्थव्यवस्था तेजी पकडऩे में कामयाब रही। परंतु अत्यधिक विस्तार, उच्च तेल कीमतों और देश में भ्रष्टïाचार विरोधी आंदोलन के बाद आई प्रशासनिक पंगुता ने वृद्घि पर असर डाला और वर्ष 2012-13 में वृद्घि दर घटकर 5.4 प्रतिशत रह गई। वर्ष 2013-14 में एक बार फिर सुधार का सिलसिला शुरू हुआ। मौजूदा सरकार ने वृहद आर्थिक स्थिरता को लेकर जो सतर्कता भरा रुख अपनाया उसने, तेजी से सुधरते वैश्विक हालात और कमजोर तेल कीमतों ने एक बार फिर वृद्घि दर सुधारने में मदद की।
यह बात ध्यान देने लायक है कि बैक सीरीज एक बार फिर इस बात को सामने लाती है कि वर्ष 2000 के दशक का विस्तार सरकारी कदमों पर आधारित था। उस वक्त जीडीपी की वृद्घि दर जीवीए की वृद्घि दर से अधिक थी। इसका अर्थ यह हुआ कि सब्सिडी की वृद्घि अप्रत्यक्ष कर से तेज है। यह बात नए आंकड़ों में कई तरह से देखने को मिलती है। ऐसे में यह बात चिंताजनक है कि वर्ष 2012-13 की व्यापक तेजी के बाद कोई प्रोत्साहन देखने को नहीं मिला है। यह तब है जबकि वैश्विक वृद्घि काफी हद तक वापसी करने में कामयाब रही है। निश्चित तौर पर कई संकेतक, जिसमें रिजर्व बैंक का क्षमता उपयोग सर्वेक्षण भी शामिल है, वह मार्च 2018 में समाप्त तिमाही में 75.2 फीसदी के साथ दो वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। इससे यह संकेत भी मिलता है कि मांग में इजाफा हो रहा है। यह रुझान क्षेत्रवार बिक्री के आंकड़ों और गैर तले आयात में बढ़ोतरी में भी देखने को मिल रहा है।
इसका अर्थ यह भी हुआ कि वृहद आर्थिक स्थिरता का परीक्षण अधिक करीबी से करना होगा। जुलाई में व्यापार घाटा 18 अरब डॉलर के साथ 62 महीनों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। कई विश्लेषकों का कहना है कि पूरे वर्ष का चालू खाते का घाटा जीडीपी के 2.8 फीसदी के बराबर होगा। ऐसे वक्त में जबकि वैश्विक पूंजी उभरते बाजारों से दूर है तो यह जोखिम भरा हो सकता है। तुलनात्मक रूप से देखें तो इंडोनेशिया का चालू खाते का घाटा भी करीब 3 फीसदी है जबकि दक्षिण अफ्रीका का 5 फीसदी और तुर्की में यह 8 फीसदी है। सरकार को यह देखना होगा कि वह अपनी पूर्ववर्ती सरकार की तरह जीडीपी वृद्घि दर की ऊंचाई पर कैसे पहुंचाएगी। यह काम उसे बिना वृहद अर्थव्यवस्था को अस्थिर किए करना होगा।