अदालत ने यह भी कहा कि यह एक प्रवृति सी बन गई है कि अगर महिला और पुरुष के बीच कहासुनी या मारपीट जैसी घटना हो जाती है तो उसमें छेड़खानी की धारा को जोड़ दिया जाता है, जो न्यायसंगत नहीं है।
नई दिल्ली।। देशभर में सुर्खियों में चल रहे मीटू अभियान के बीच दिल्ली की एक अदालत ने छेड़खानी के एक मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि अगर महिला के साथ कोई अपराध होता है तो यह जरूरी नहीं है कि उसके साथ छेड़खानी या बदसलूकी के आरोप जोड़ दिए जाए। खासतौर पर तब जब पीड़िता मौके पर ही अपने साथ यौन शोषण या छेड़छाड़ का आरोप न लगाए। अदालत ने कहा कि घटना के कुछ समय बाद लगाया गया यौन शोषण का आरोप अमान्य है।
क्या है मामला
एक महिला ने अपने रिश्तेदार के खिलाफ 22 सितंबर 2018 को मारपीट की शिकायत दर्ज कराई थी। महिला की 23 सितंबर को मेडिकल जांच कराई गई। चश्मदीद गवाह के तौर पर पीड़िता की मां और भांजे के बयान भी दर्ज किए गए, लेकिन पीड़िता ने घटना के तुरंत बाद छेड़खानी की बात नहीं कही। यहां तक कि एमएलसी कराते समय भी पीड़िता ने डॉक्टर के सामने उसके साथ छेड़खानी की घटना का जिक्र नहीं किया।
घटना के कई दिन बाद छेड़छाड़ का आरोप लगाया
पीड़िता ने घटना के कई दिन बाद अचानक आरोपी रिश्तेदार पर शारीरिक तौर पर छेड़खानी का आरोप लगा दिया। इसके बाद यह मामला अदालत में पहुंचा। रोहिणी स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जितेन्द्र कुमार मिश्रा की अदालत ने इस मामले में पीड़िता द्वारा घटना के कई दिन बाद आरोपी पर छेड़खानी के आरोप लगाने को सही नहीं माना। अदालत ने इस रवैये पर टिप्पणी करते हुए कहा कि सोच-समझ कर छेड़खानी का आरोप लगाना कानूनी रूप से बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है। अगर वास्तविकता में पीड़िता के साथ छेड़खानी हुई है तो उसे मौके पर ही बयान क्यों नहीं किया गया।
आरोपी की गिरफ्तारी पर रोक लगाई
अदालत ने यह भी कहा कि यह एक प्रवृति सी बन गई है कि अगर महिला और पुरुष के बीच कहासुनी या मारपीट जैसी घटना हो जाती है तो उसमें छेड़खानी की धारा को जोड़ दिया जाता है, जो न्यायसंगत नहीं है। यह टिप्पणी करते हुए अदालत ने इस मामले में आरोपी की गिरफ्तारी पर फिलहाल रोक लगा दी है।