विस्थापितों ने मांगी परियोजनाओ में हिस्सेदारी और भागेदारी,,,!
कहा अपनी ही जमीन पर अब नही सहेंगे अपमान,,,!
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के सी शर्मा |
शक्तिनगर। "विस्थापित अधिकार मंच" की बैठक में कल तीसरी पीढ़ी को परियोजनाओं द्वारा विस्थापित न माने जाने और एनसीएल की कृष्णशिला परियोजना की नोटिस बोर्ड पर लगी उस नोटिस का मामला छाया रहा जिसमे लिखा है, कि आउटसोर्सिंग कम्पनी मे रोजग़ार हेतु कोईं भी आवेदन,प्रतिवेदन मुख्यमहाप्रवन्धक कार्यालय में स्वीकार नही किया जाएगा।
विस्थापित नेताओ ने कहा अब सर के ऊपर पानी बहने लगा है, कल तक जिस जमीन के हम मालिक थे,जिससे पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे परिवार का जीवका चलता था,आज हम देश के विकास के नाम पर अपनी ही जमीन पर भुखमरी के कगार पर आचुके है।
दूसरी तरफ परियोजनाएं लगातार अपना उत्पादन बढ़ा,फल फूल रही है और उनका हर वर्ष मुनाफा बढ़ता ही जा रहा हैं,और हमारे पास अपने बढ़े परिवार को रहने हेतु घर बनाने के लिए ज़मीन तक नही है।
वही हमारी ही हजारो एकड़ जमीन पर जिसे परियोजना ने आवश्यकता से अधिक अधिग्रहण कर लिया था,उस पर अतिक्रमण करा दिया गया हैं,जहा बड़ी बड़ी बस्तियां और बाजार बसा दिए गए हैं।
वही भूस्वामी के पास अपने रहने के लिए भूखण्ड का एक टुकड़ा नही बचा है और बच्चों के परवरिस के लिए ठेकेदार के पास भी मजदूर की भी नौकरी नही मिल रही है। जहाँ कल हम इस जमीन के मालिक थे आज उसी अपनी ज़मीन पर गुलामो से भी बदतर जिंदगी जीने के लिए मजबूर कर दिये गए है ।
यह उदगार कल "विस्थापित अधिकार मंच"की चिल्काडाड पंचायत भवन पर हो रही बैठक में विस्थापित नेताओ ने व्यक्त कीये और कहा कि अब हमें अपने अधिकारों की लड़ाई सड़क पर उतर के लड़नी ही होगी ।अब हम भीख मांगने , जैसे रोजीरोजगार आदि की मांग नही करेंगे।विस्थापित अपने अधिकार और सम्मान की लड़ाई लड़ेगा ।
अब उसे परियोजनाओं में अपने भूमि के बदले जब तक हमारे ज़मीन पर उद्योग चलेगा तब तक कि हमे भागेदारी चाहिये और उद्योग के लाभांश से हमे भी हर महीने एक निश्चित हिस्सेदारी चाहिए। जिसमे शिक्षा,चिकित्सा,पुनर्वास की समुचित व्यवस्था चाहिए।विस्थापितों ने कहा कि अब विस्थापित "हड्डी पर कबड्डी" नही खेलने देगा,वह अपने अधिकारों के लिए लड़ेगा। अगर भागेदारी व हिस्सेदारी की नीति नही है तो सरकार नीति बनाये।
देश के कई उद्योगों में इस तरह की नीति वर्षो पहले ही आचुकी है।किसी भी परियोजना को स्थापित करने के लिए चार तरह की पूंजी की आवश्यकता पड़ती है, तब जा के कोईं उद्योग खड़ा होता है, जिसमे भूमि,पूजी,तकनीक, प्रबन्धन,की आवश्यकता होती है।उसमें सबसे महत्वपूर्ण हैं भूमि यदि भूमि नही है तो बाकी की तीन पूजी होते हुए भी उद्योग नही लग सकता है।इस लिए भूस्वामी पहले हिस्से का हकदार हैं। हमारी जमीन से कोयला और बिजली का उत्पादन कर देश का विकास किया जारहा है और हम फटेहाल, भुखमरी के कगार पर आके खडे हो गए हैं।जो अब चलने वाला नही है। हमे हमारा मालिक का सम्मान मिलना ही चाहिए और नीति नही है तो नीति बननी चाहिए।
"नही तो जब तक सिंगरौली का विस्थापित भूखा रहेगा, तब तक सिंगरौली की सरजमी पर तूफान रहेगा!"
आने वाले समय मे यहाँ औद्योगिक शांति बनाए रखने के लिए परियोजना प्रबंधन व सरकार को समय रहते उपयुक्त कदम उठा लेना चाहिए,वरना गुलामो से बदतर जिंदगी जीने से बेहतर है विस्थापित को अपने सम्मान हक,हकूक की लड़ाई आनेवाली पीढ़ी के लिए लड़ के मरना चाहिए ।
विस्थापितों ने कहा आवश्यकता से अधिक ली गयी परियोजनाओं द्वारा जमीन जिस पर अतिक्रमण करा दिया गया है ,उसे खाली करा विस्थापितों को वापस की जाए आदि, समस्याओ पर बिस्तार से चर्चा करते हुए विस्थापितों ने आगे के संघर्ष की रणनीति बनाई।
"विस्थापित अधिकार मंच" अगली बैठक 13 अक्टूबर को खड़िया हनुमान मंदिर पर आहूत की गई है।
आज के बैठक की अध्यक्षता विस्थापित नेता जंगबहादुर चौबे ने की और संचालन कमलेश गुप्ता ने किया।बैठक में जिन प्रमुख विस्थापित नेताओ ने अपने विचार व्यक्त किये उनमें सर्वश्री के सी शर्मा,नन्दलाल पूर्वप्रधान,पूर्व उप प्रधान नर्बदा कुशवाहा,रामशुभग शुक्ला,आनन्द पांडेय, सुनील कुशवाहा,ठाकुर दयाल,शंकर विश्वकर्मा,भगवानदास,आदि रहे।इसके अतिरिक्त सैकड़ो विस्थापित प्रतिनिधि विभन्न गांवों से बैठक में भाग लेने पहुचे हुए थे ।
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