नयी दिल्ली।। देश की सबसे बड़ी बिजली उत्पादक कंपनी एनटीपीसी लिमिटेड ने कोयला से चलने वाले अपने सभी संयंत्रों में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन और प्रदूषण में कमी लाने के लिए ईंधन के रूप में कोयले के साथ बॉयोमास के उपयोग की योजना बनायी है।
ज्ञात हो की प्रदूषण की समस्या को लेकर "उर्जांचल टाइगर" के अक्टूबर 2018 के अंक में आवरण कथा "तापीय परियोजनाओं के ताप से झुलसते लोग" शीर्षक के नाम से प्रकाशित किया था।
ज्ञात हो की प्रदूषण की समस्या को लेकर "उर्जांचल टाइगर" के अक्टूबर 2018 के अंक में आवरण कथा "तापीय परियोजनाओं के ताप से झुलसते लोग" शीर्षक के नाम से प्रकाशित किया था।
एनटीपीसी की बिजली के उत्पादन में कोयले के साथ बेकार लकड़ी, वन एवं फसल के अवशेष, खाद और कुछ प्रकार के अपशिष्ट पदार्थों का इस्तेमाल करेगी।
वातावरण में फ़ैल रहे जहरीले कार्बन में आएगा कमी
बॉयोमास के जरिए विद्युत संयंत्रों में ईंधन जरूरतों का 3 से 15 प्रतिशत तक पूरा किया जा सकता है। सूत्रों ने बताया कि एनटीपीसी देशभर के अपने बिजली संयंत्रों में ईंधन के रूप में इस्तेमाल के लिए बॉयोमास के छोटे गोले (पैलेट) की खरीद की प्रक्रिया जल्द ही शुरू करेगी और जल्द ही निविदा आमंत्रित करेगी।
इस पहल का उद्देश्य अतिरिक्त कृषि अवशेषों को जलाने से पैदा होने वाले वायु प्रदूषण और कोयला के इस्तेमाल के कारण उत्सर्जित होने वाले कार्बन की मात्रा में कमी लाना है। साथ ही इसका लक्ष्य विद्युत संयंत्रों में इस्तेमाल के जरिए अतिरिक्त कृषि अवशेषों के लिए एक वैकल्पिक बाजार तैयार करना है।
बिजली उत्पादन के लिए कोयले की जगह कृषि अवशेष का उपयोग किया जा सकता है।
बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान तथा नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) द्वारा 2002-2004 के आंकड़ों के आधार पर संयुक्त रूप से तैयार ‘बॉयोमास रिसोर्स एटलस ऑफ इंडिया’ में कहा गया है कि भारत में हर साल 14.5 करोड़ टन अतिरिक्त कृषि अवशेष निकलता है। इस अतिरिक्त कृषि अवशेष का इस्तेमाल 18,728 मेगावॉट बिजली के उत्पादन के लिए किया जा सकता है। देश में कोयला आधारित बिजली उत्पादन 1,96,098 मेगावाट है, ऐसे में करीब 10 करोड़ टन कृषि अवशेष का उपयोग कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में किया जा सकता है।