भीतरघात और फूूट से जूझ रहे सिगरौली विधान सभा-80 के सभी बडे राजनितिक दल। विगत चुनाओं की अपेक्षा इस विधानससभा चुनाव में सभी बडी़ पार्टीयों के उम्मीदवारों के पसीने छूट रहे हैं। फूट और भीतरघात हर जगह हावी है।कांग्रेस,भाजपा और बसपा में इस बार उम्मीदवारी के कई कई दावेदार थे और सब ही अपनी प्रबल दावेदारी के कारण इस उम्मीद में बैठे थे कि टिकट उन्हें ही मिलेगा। इन पार्टीयों के नीति निर्धारक भी इसबार उपामोह में अंत तक फंसे रहे कि किससको टिकट दिया जाय। टिकट के फाईनल होते ही भीतर घात और फूट भी उभर कर सामने आ गया और कुछ लोग तो बागी हो पार्टी ही छोड़ बैठे ।
डॉ.कुणाल सिंह
जिला सिगरौली के विधानसभा सिगरौली में बसपा की जडें मजबूत रहीं हैं। बसपा ने सिंगरौली का पहला महापौर भी दिया। पार्षदों की संख्या भी डेढ दर्जन से कम नहीं रही जबकि कुुल वार्ड 45 ही है। इसबार बसपा से टिकट न मिलने के उम्मीद में पूर्व महापौर और नेता रेनूशाह ने चुनाव के महीना भर पहले ही कांग्रेस ज्वाइन कर ली थी। कांंग्रेस में जाने का उनका प्रयास महीनो पहले से चल रहा था और प्रदेश कांग्रेस हाईकमान से टिकट का आश्वासन भी उंहें मिल चुका था। अब बीएसपी को कितना तोड़ पायेंगी और बीएसपी कैड़र के कितना लोगरेनुशाह के साथ आ पायेंगे ,कहना मुश्किल होगा। बसपा ने अंतत: सुरेश साहवाल को टिकट दिया है और वह जोशखरोश से चुनाव मैदान में डटे हुए हैं।
सिगरौली विधान सभा -80 में कांग्रेस की हालत बहुत बुरी बताई जाती है। जहां कांग्रेस के कैडर समर्थक पैरासूट प्रत्याशी दिये जाने से खफा हैं वही रेनूशाह को बागी उम्मीदवार और पार्टी के दिग्गज नेता अरविंद सिंह चंदेल से भी जूझना पड़ रहा हैं। यह कहते हुए कि उनन्हे आला कमान से आश्वासन मिला हुआआ है कांग्रेस के नाम पर जिला महामंत्री अमित द्विवेदी ने भी परचा दाखिल किया था पर उन्होने नाम वापस कर लिये। बागीयों को मनाने की केशिश में अमित द्विवेदी को प्रदेश सचिव बना कर शांत कर दिया गया है परंतु वह कितना शांति से बैठेंंगे भविश्य बतलाएगा। भीतरघात, फूट और बागी उम्मीदवार के बीच जूझती रेनूशाह कांग्रेस की नैया पार लगा सकेंगी ,भविष्य के गर्भ में निहित है।
कांग्रेस का उम्मीदवार अगर परेशान है तो भाजपा कंडिडेट रामलल्लू वैस भी कम परेशान नहीं हैं। भाजपा में इसबार किसी सवर्ण को टिकट मिलने की उम्मीद जतायी जा रही थी। इसी कारण टिकट के सबसे ज्यादे दावेदार भाजपा मेंही थे। यह अलग बात है कि पूर्व विधायक रामलल्लु वैस को ही अंतत: टिकट थमा दिया गया। हाई कमान के फैसले से सभी सवर्ण दावेदार आवाक हैं। पर पार्टी केडर से बाहर जा कर किसी ने विरोध नहीं किया। यह भी सच है कि अगर रामलल्लु जीत जाते हैं तो भाजपा में सवर्ण की दावेदारी सिगरौली में हमेशा के लिये समाप्त होने वाली है। इस दृष्टि से देखा जाय तो आग भीतर ही भीतर सुलगती जा रही है। भाजपा के पंद्रह साल के शासन में एक बार महापौर और दो बार विधायक रहे राम लल्लु ने सिगरौली के विकास के लिये कुछ खास नही कर पाये सो भाजपा समर्थकों में भी भीतर भीतर रोष पनपा हुआ है, इस लिये लगता है कि उनका आश्वासन सम्रथकों को रास नही आ रहा है। देखना यह है कि सवर्ण नेताओं और उनके कार्यों से ना खुश भाजपा समर्थकों को राम लल्लु कितना बांध पाते हैं।
आमआदमी पार्टी से उतरी रानी अग्रवाल के साथ कोई अंतर विरोध नही हैं। पंचायत सदस्य रानी अग्रवाल भी एक मंझी हुई नेता है। उन्हें हर पार्टी का वोट विकल्प के तौर पर मिलता दिख रहा है। इस तरह से वह संघर्ष त्रिकोेणात्म बनाये हुए है। अगर यही स्थिति बनी रही तो अंतत: यह लडाई आमआदमी पार्टी और भाजपा के बीच सिमटने वाली होगी।
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