शक्तिनगर में रामकथा के समापन के साथ शुरू होने जा रहा है,राजनीती के शतरंज की बिसात और शह-मात का खेल
शक्तिनगर के राजीव गांधी मार्केट ( पी डव्लू डी मोड़)में जब आम लोगो,राजनैतिक कार्यकर्ताओ और समाजिक कार्यकर्ताओ के बीच, आज कल यहा चल रहे एक धार्मिक कार्यक्रम को लेकर हुल्लड़बाजी, चुल्लड़बाजी चट्टी चौराहे के चाय,पान की दुकानों में होती है। तो सीधी आंखों से देखने में यह ड्रामा कुछ और लगता है । जबकि तीसरी आंख खोलने पर इसमें शतरंजी शह-मात के खेल की झलक दिखने लगती हैं ।
के सी शर्मा
पर्दे के पीछे की असल कहानी?
इधर कुछ एक साल से शक्तिनगर में सत्तापक्ष में कई धराये बन गयी है। ये धाराये एक होकर अब संगम नहीं बना पा रही है।कुछ धाराये एक तरफ तो कुछ की धारा दूसरी तरफ बहने लगी है। यह बहते बहते इतना आगे निकल चुकी है और इनमें बीच की खाई भी इतना बढ़ चुकी है कि इनका कभी संगम होगा यह फिलहाल कह पाना सम्भव नही है।आगे क्या होगा यह भविष्य के गर्भ में है।
कई पाटन की चक्की का असर है कि एक पाटन को लग रहा है कि उसकी पुछ ताछ व महत्व कम हो रही है । तो दूसरा भी यही समझ रहा है। इसी उठा पटक में सत्ता में आने के बाद साल दर साल गुरते चले जारहे है। पर जनता का काम होना तो दूर कार्यकर्ता अपना काम भी नही करा पारहे है।उन्हें तो अपनी सरकार में अपने मान सम्मान की रक्षा करना भी मुश्किल जैसा है।यही उपेक्षा गुस्से की जननी होती है और जब उर्जान्चल के शक्तिनगर में वास्तु के अनुसार मकड़ी के जाला जैसा हानिकारक तत्व अपना असर दिखाने लगा तो शतरंजी चौपड़ से शह-मात का खेल शुरू हो गया ।मामले को शांत करने की हर कोशिश में कोई न कोई प्यादा बीच में टपकते दिखा ।जिससे मामला हल होते होते फिर गेम अंजाम तक पहुंचने के पहले ही उलझ जाया करती है ।
योगी सरकार के आने के बाद से शुरू पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई अब तक जारी।
हम बड़े कि तुम बड़े के चक्कर में मौक-ए-वारदात ( शक्तिनगर) में ढेरों राजनैतिक दुकानें खुल गईं हैं।सब अपनी अपनी राजनैतिक दुकानो पर रौनक बढ़ाने लगे हुए हैं।यह सिलसिला प्रदेश में योगी सरकार बनने के कुछ महीनों बाद शुरू हुआ जो आज तक चला आरहा है।इस दौरान सत्ता पक्ष में कई मौके ऐसे भी आये की आमने सामने की टकराहट होते होते बची।सत्ता पक्ष कई टुकड़ो में इस समय बिखर गया है,!इस समय शक्तिनगर में एक धार्मिक आयोजन ने तो इसमें और खाई बढ़ा दी है।
सत्ता पक्ष के ये हुजूरे-आला गण चकरिया रहे है कि कौन सा फार्मूला अपनाएं कि 'कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना' की दवा देने वाला कोई वैद्यजी मिलें।सारे वैद्य लोग तमाम औषधि, आसव, चूरन लेकर इधर से उधर कर रहे है लेकिन दवा लेने को कोई तैयार ही नहीं मिल रहा है ।अलबत्ता शोर-शराबा से बहुतों का टॉन्सिल और क्षति ग्रस्त हो गया है।इलाज में फिलहाल दवा के रूप में ' अनुशासन जैसी अमृतधारा' तो पहले ही वितरित कर दी गयी थी।
लोग कहते हैं यह धार्मिक कार्यक्रम एक दल व एक संगठन का मंच बन कर रह गया हैं,!इस क्षेत्र के विभिन्न बिचार धारा के हिंदुओं की बातों पर गौर करे तो यह कार्यक्रम कम बल्कि यह एक दल व एक संगठन का मंच बन कर रह गया है।जहाँ विभिन्न धड़ो में बटे खेमो में इस कार्यक्रम के आड़ में राजनैतिक हनक बनाने की होड़ ज्यादा देखने को मिल रही है ,धार्मिक आस्था ,व निष्ठा तो कम ही दिखा।
अलबत्ता यह कार्यक्रम लोगो को जोड़ने के बजाय आयोजको के अहम के चलते और राजनैतिक हनक बनाने की प्रतिस्पर्धा में लोगो को इस कदर विखेर दिया कि अब लगता नही की वह कभी दिल से एकत्रित हो पाएंगे।जिसकी नींव पड़ चुकी हैं जिसका दुर्गामी परिणाम होना तो अब सुनिश्चित हो ही गया हैं।
शह-मात और चित-पट का यह राजनैतिक खेल कल से कार्यक्रम के समापन के साथ हो जाएगा शुरू,,!सप्ताह भर से चल रहा यह धार्मिक कार्यक्रम कल विशाल भंडारे के साथ समाप्त हो जाएगा।परन्तु यह कार्यक्रम अपने पीछे जो छोड़ के जाने वाला है उसकी नींव सप्ताह भर में खोद दी है ।जिस पर राजनैतिक इमारत बनाने का काम नए ऊर्जा व उत्साह के साथ कल से शुरू हो जाएगा।जो पूरे कार्यक्रम में सप्ताह भर चले इस आयोजन में प्रतिदिन देखने को मिली। इस धार्मिक आयोजन में राजनीति की झलक ज्यादा देखने को मिली और शक्ति प्रदर्शन भी करने के दाव पेच भी देखने को मिलते रहे।
इसलिए अब यह कहना अतिश्योक्ति नही होगा कि इस आयोजन के समापन के साथ ही शुरू होने जा रहा है , शह-मात और चित -पट का राजनैतिक खेल, जहां धर्म युद्ध ही नही होगा, बल्कि अधर्म युद्ध भी होगा ,जिसकी नींव पड़ चुकी है ।जिसमे युद्ध जितना सेना,सेनापतियों का लच्छय होगा , चाहे धर्म युद्ध या अधर्म युद्ध हो,जिसके राजनैतिक बर्चस्व का शंखनाद इस मंच से हो ही गया है।
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