उपकरणों के अभाव में मेघालय के ईस्ट जयंतियां हिल्स के कोयला खदान में चल रहे राहत बचाव कार्य रोका गया।
अनीता वर्मा
भारत के पूर्वोत्तर राज्य मेघालय की एक अवैध कोयला खदान में 15 खनिक, 13 दिसंबर से ही अचानक बाढ़ का पानी खदान में भर जाने के पश्चात फंसे हुए है।राहत और बचाव कार्य कुछ दिनों के पश्चात उपकरणों के अभाव में बंद कर दिया गया है।ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या उन 15 खनिकों को सरकार ने मरने के लिए यूं ही छोड़ दिया है? या सरकार मान के चल रही है वो अब जीवित नहीं होगें।
देखा जाए तो इस प्रकार की घटना ने अवैध कोयला कारोबार को एक बार पुनः चर्चा में ला दिया है। इस प्रकार की अवैध,अवैज्ञानिक और असुरक्षित कोयला खदानों पर एनजीटी ने चार वर्ष पूर्व ही प्रतिबंध लगा दिया था। जब एनजीटी के पास दायर याचिका में उल्लेखित किया गया था कि मेघालय में कोयला खनन की रैट होल की प्रक्रिया ने कोपिली नदी जो मेघालय और असम से होकर प्रवाहित होती है उसे अम्लीय बना दिया है।दरअसल एनजीटी ने अपने आदेश में एक रिपोर्ट को आधार बनाते हुए कहा कि चूंकि खनन क्षेत्रों के आसपास सड़कों का उपयोग कोयले के ढेर को इकट्ठा करने हेतु किया जाता है।जिसके कारण वहाँ की जल,वायु और मिट्टी प्रदूषित होती है क्योंकि यह प्रदूषण का एक स्त्रोत है।
लेकिन मेघालय की घटना दर्शाती है अवैध कोयला कारोबार की गतिविधियों में कोई भी कमी नहीं आई है।खनिकों के जान को जोखिम में डालकर इस प्रकार की गतिविधियों को अंंजाम दिया जा रहा है।ऐसा नहीं है कि मेघालय में यह कोई पहली घटना है।2012 में भी इसी प्रकार के हादसे में 15 खनिक अपने जीवन से हाथ धो बैठे।इस मामलें में एक व्यक्ति की गिरफ्तारी हुई थी और राज्य सरकार ने मुआवजे के तौर पर एक एक लाख की राशि मुहैया कराई थी।लेकिन समस्या यह है कि दुर्घटना से भी सरकारों को सीख लेने की आवश्यकता महसूस नहीं होती है।बेहतर होता कि सरकार से लेकर आम जनता भी इस प्रकार की दुर्घटना के प्रति सचेत होते और सरकार अवैध खनन पर अंकुश लगाती।
मेघालय में बचाव अभियान मुश्किल क्यों हो रहा है?
मेघालय के ईस्ट जयंतिया हिल्स जिले के अवैध कोयला खदान के समीप से लीटन नदी प्रवाहित होती है।लिटन नदी का पानी कोयला खदान में अचानक भर जाने से सभी खनिक उसी में फंस गए। जो बिना मदद के बाहर निकलने में असमर्थ है। ज्ञात हो कि अवैध खनन होने से खनिकों का वास्तविक रिकॉर्ड भी अज्ञात ही होगा।मेघालय में कोयला निकालने की प्रक्रिया को" रैट होल माइनिंग "कहा जाता है।इसके लिए 500 से 600 वर्गमीटर वाले एक इलाके का चुना किया जाता है।तत्पश्चात वहाँ एक ऐसी सुरंग खोदी जाती है।जो काफी संकरी होती है।उस सुरंग से केवल एक व्यक्ति ही एक बार में अंदर जा सकता है। संकरी सुरंग से अंदर जाकर खनिक कोयला निकालते है।संकरी सुरंग के माध्यम से खनिकों का कोयला निकालने की प्रक्रिया को रैट होल माइनिंग कहते है।
राहत बचाव कार्य मुश्किल लेकिन नामुमकिन नहीं है।जिस प्रकार ईस्ट जयंतिया हिल्स के अवैध कोयला खदान में लगभग 70 फीट पानी भरा हुआ है।उसको निकालने के लिए बेहतर उपकरणों के साथ साथ पेशेवरों टीमों की आवश्यकता है।जो 21 वीं सदी के भारत में तो अवश्य ही उपलब्ध है।इसलिए यह बचाव कार्य नामुमकिन तो नहीं है।
एनडीआरएफ के पूर्व डीआईजी का भी कहना है कि सरकार भले ही इसके लिए तैयार नहीं हो लेकिन एनडीआरएफ टीम पूरी तरह से तैयार है।यदि सरकार पानी निकालने हेतु संसाधनों को मुहैया करवाती है तो पानी को निकालना मुमकिन था। इसलिए मेघालय सरकार को बचाव कार्य को पुनः आरंभ करना चाहिए।
अवैध कोयला खदानों में दबती खनिको की सांसे
भारत के और राज्यों में भी जैसे झारखंड, पश्चिम बंगाल आदि में अवैध खदानों की अधिकता है ।खनिक अपनी जीविका चलाने हेतु प्रतिदिन इन कोयला खदानों के भीतर जाने को मजबूर है।दूसरा बहुत से खनिकों को तो यह ज्ञात ही नहीं होता कि खदानें अवैध है क्योंकि उन्हें इसकी जानकारी ही नहीं होती है ।तीसरा पश्चिम बंगाल के रानीगंज और आसनसोल में भी काफी अवैध खदानें है।हालात यह है कि जिन खदानों से ईसीएल कोयला निकालना बंद कर चुका है।उन खदानों में भी अवैध कोयला खनन किया जाता है और दूर दराज वाले इलाके में भेजा जाता है।यहाँ देखा जाए तो कोयला माफियाओं पर सिंकजा कसने में राज्य सरकारें कामयाब होते तो नहीं दिखती ,लेकिन खनिकों की सांसे अवश्य थम जाती है।
कई बार मन में विचार आता है कि अवैध कोयला खदानों में खनिक लोग अवैध कारोबारियों की राह को आसान बना देते है भले ही उनकी जिन्दगी की डोर चंद रूपये के लिए टूट जाती है।लेकिन देखा जाए तो यहाँ कई प्रकार की समस्या है पहली जीविका, दूसरा जागरूकता का अभाव ।दोनों समस्याओं के समाधान हेतु केंद्र और राज्य सरकारें उत्तरदायी है। यदि किसी व्यक्ति के पास रोजगार की उपलब्धता न हो तो यह सरकारों की जिम्मेदारी है कि उसे रोजगार उपलब्ध कराए और यदि कोई व्यक्ति बिना सोचे समझे रोजगार हेतु गलत मार्ग को चयन करता है तो भी सरकारों का ही दायित्व है कि उस पर अंकुश लगाए।भारत एक लोकतांत्रिक देेेश के साथ साथ लोककल्याणकारी तत्वों को भी समाहित करता है। ऐसे में इसके दायित्व में और भी वृद्धि हो जाती है।
अतः आवश्यकता है कि न केवल मेघालय बल्कि अन्य राज्यों में भी अवैध कोयला खदानों पर राज्य सरकारों और केंद्र सरकारों को कठोर अंकुश लगाना चाहिए।ताकि मेघालय के साथ साथ अन्य राज्यों में भी इस प्रकार की जटिल परिस्थिति उत्पन्न न हो और मेघालय में पेशेवर बचाव दल को बेहतर उपकरणों के साथ बचाव कार्य हेतु सरकार पुनः लगाए ताकि 15 खनिकों के बारे में सूचना की प्राप्ति हो सके और उनके जीवन को बचाया जा सके।