डॉ कुणाल सिंह
गांधी जी निष्प्राण निश्चल खड़े थे। उन्हें भीड़ ने घेर रखा था। यह भीड़ गाँधी जी को नफ़रत करने वालों की थी और वह नफ़रत की इस अदालत में आवाक, अकेले, कटघरे में खड़े किये गए थे। भीड़ उत्साहित थी,बस,मारो मारो नहीं चिल्ला रही थी कि भीड़ मे से एक तेजतर्रार महिला निकली और गाँधी जी को गोली मार दी। गाँधी जी "हे राम "भी न कह सके।
आजाद भारत में सभी को सबकुछ करने धरने का अधिकार है परन्तु ये संविधान के दायरे में ही होने चाहिए। यह अधिकार क्या है? एक बार फिर सोचने को विवश करता है। क्या यह आजादी मर्यादा से, कानून से बाहर जाने का अधिकार देता है? बिलकुल नहीं। उसकी शिकायत उचित मंच पर रख कर न्याय की मांग की जा सकती है। हम सबकुछ कर सकते हैं पर दुसरे को गाली नहीं दे,गोली नहीं मार सकते।सबकी विचारधारा अलग अलग हो सकती है. जिसे हम अपराधी मानते हों वह सामूहिक विचारधारा में अपराधी नहीं भी हो सकता है।तो क्या हम दंड देने का अधिकार है? सन 2014 के बाद के भारत में यह तथ्य विलक्क्ष्ण रूप में सामने आया है की मुठ्ठी भर लोगों द्वारा सरेआम न्याय किया जाने लगा है। मासलिचिंग की घटनाएँ बढ़ी है।
अगर इस तरह की घटनाएं बढ़ रहीं हैं तो इसके लिए जिम्मेदार है कौन? लोग? शासन? प्रशासन?कानुन व्यवस्था? या सरकार. सरकार अपनी मंशा के अनुरूप शासन चलाती है,प्रशासन कानुन व्यवस्था संभालती है और लोग उसका पालन करने को मजबूर होते हैं।जाहिर है कि सता की मंसा वाले विचार धारा के उदंड लोग निरंकुश हो जाते हैं क्योंकि उन्हें सताधारियों का संरक्षण मिल जाता है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि सरकार की मंशा क्या है।क्योंकि उसी के अनुसार शासन प्रशासन काम करता है।किसी भी मासलिचिंग की घटना पर इसके दोषियों पर कहीं भी कोई शख्त कार्यवाही नहीं की जा सकी। बुलंद शहर में इन्स्पेक्टर मारा जाता है और इसके दोषी कुछ संगठनो के नायकों को सरकार की तरफ से बचाए जाने का प्रयास हो रहा है जबकि पुलिश रिकार्ड में में अभियुक्त वहीँ हैं।कथित पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाने पर कन्हैया कुमार पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज होता है पर अफजल गुरु को शहीद मानने वाली पी डी एफ़ महबूबा के साथ सरकार बनाई जाती है।आखिर सरकार की नजर में " राष्ट्रद्रोह " की परिभाषा क्या है?
जिन्हें पूरा राष्ट्र और सारा विश्व नत मस्तक हो "राष्ट्रपिता "कहता है उस निष्प्राण बापू को उनके ही पूण्यतिथि तिथि पर सरेआम गोली मार डी जाती है तो न तो जिला प्रशासन न हि प्रदेश सरकार ही इसे गंभीरता से अब तक ली है।क्या यह राष्ट्रद्रोह का वाकया नहीं है? क्या इस वाकये के दोषियों को छुट देना जायज है? या देर से ही सही राष्ट्रद्रोह का मुकदमा दर्ज किया जाएगा?
यह वाकया है उत्तरप्रदेश के अलिगढ़ का जहां हिन्दुमहा सभा के कार्यकर्ताओं के बीच एक अपराधी के रूप में गाँधी जी के पुतले को खडा किया गया।जब सारादेश तीस जनवरी को उनकी पुण्यतिथि मना रहाथा, यहाँ हिन्दू महा सभा की राष्ट्रीय सचिव पूजा शकुन पाण्डेय बड़े ही शान से भीड़ से निकलती हैं और कृतिम बन्दुक से गाँधी जी को गोली मार देती हैं। मुठ्ठी भर भीड़ जोश में चिलाती हैं "नाथूराम गोडसे जिंदाबाद"
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