अब्दुल रशीद
लोकतंत्र की जो परिभाषा है वह स्वयंभूओं और तानाशाही मिजाज़ को कभी रास ही नहीं आया। उसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि उन्हें यह कभी स्वीकार ही नहीं के समाज के अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति की थाली की साजसज्जा शीर्ष पर बैठे व्यक्ति जैसी हो।
लोकतंत्र की जो परिभाषा है वह स्वयंभूओं और तानाशाही मिजाज़ को कभी रास ही नहीं आया। उसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि उन्हें यह कभी स्वीकार ही नहीं के समाज के अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति की थाली की साजसज्जा शीर्ष पर बैठे व्यक्ति जैसी हो।
यही वज़ह है कि आम जनता को राजनेता वह सब देने की बात करता है जिसका भोग वह निःशुल्क या नाम मात्र के शुल्क पर स्वयं करता है। जबकि देश की कमान संभालने वालों को चुनने वाली जनता को यह उम्मीद होता है कि अब भीख मांगने का वक्त खत्म हो जाएगा और उसके वोट से चुनकर संवैधानिक पद पर आसीन माननीय ऐसे हालात बनाने का प्रयास करेंगे, जिसमें हर व्यक्ति को अपनी काबिलियत के मुताबिक मानदेय मिलेगा और हर घर के दरवाजे पर खुशियों का चिराग रोशन होगा। लेकिन होता कुछ और है।,लोकतंत्र में लोक दरकिनार कर दिया जाता है, तंत्र के मंत्र से आम जनता हिरण बन कर कस्तूरी की चाह में भटकने लगती है, और माननीयों के चेहरे की लालिमा बढ़ने लगती है।
आजादी सिर्फ भारत के लिए ही नहीं, आधुनिक युग में पूरी दुनिया के लिए सबसे खूबसूरत शब्द है। लोकतन्त्र के तमाम मायने इस एक लफ़्ज़ में छुपा है। आजादी से डरने का अर्थ है, लोकतंत्र से डरना। आजादी से नफरत का अर्थ है मानवता से नफरत। आधुनिक युग में आजादी सबसे मानवीय शब्द है जो हर व्यक्ति की अस्तित्व को बचाने की गारंटी देता है।"जो किसी सिरफिरे के मैं तुम्हें आज़ादी देता हूँ कहकर गोली चलाने से ख़त्म नहीं हो सकता।
भाजपा के कद्दावर नेता राजनाथ सिंह ने एक बयान में कहा की नफरत से मिली जीत भाजपा को नहीं चाहिए,लेकिन सार्वजनिक मंच से नेताओं का गंगा-जमुनी तहज़ीब में मिस्री भरे जहर घोलने वाला भाषण, सत्ता के लिए एक भाई का दूसरे भाई के बीच नफ़रत का बीज बोना नहीं तो और क्या है? भाषण के लिए शब्दों का चयन करते समय माननीयों को राजनाथ सिंह के बयान का ध्यान करना चाहिए।
गांधी के "रामराज" की परिकल्पना।
बिहार के भिखारी ठाकुर की तरह लोकप्रिय लोक कलाकार रसूल मियां बिहार के गोपालगंज जिले के एक गांव जिगना के रहने वाले थे। रसूल मियां राम और गांधी को लेकर रचा करते थे। उनके गीतों में आज़ादी, चरखा और सुराज जिक्र होता था।उन्होंने राम का सेहरा लिखा है, गमकता जगमगाता है अनोखे राम का चेहरा। राम का चेहरा चमकता था,चमकता है,और चमकता रहेगा। लेकिन सिरफिरे लोग जो राक्षसी सोंच रख कर खुद को राम भक्त कहते हैं,दरअसल ऐसे लोगों ने अपने जीवन में एक लम्हें के लिए भी राम का ध्यान ही नहीं किया है।
जिस दिन राम का ध्यान कर गांधी के रास्ते पर चलने का दंभ भरने वाले सियासी लोग अपने सोंच में स्वच्छता कथनी और करनी में पारदर्शिता ले आएंगे उस दिन सही मायने में गांधी के रामराज की परिकल्पना साकार हो जाएगी।