मध्यप्रदेश का सियासी रंग,रंगों के पर्व होली पर और चटक हो गया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया, कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे कर भाजपा में शामिल हो गए हैं,और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरने के कगार पर है। ऐसे में सबसे महत्वपूर्ण सवाल है,ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ने का फैसला क्यों लिया?
अब्दुल रशीद
दरअसल इस बगावत की लौ दिसंबर 2018 से सुलग रही थी,जब मध्य प्रदेश में भाजपा को हराने के बाद कांग्रेस आला कमान ने सिंधिया को नजरअंदाज कर कमलनाथ को मुख्यमंत्री की गद्दी पर बिठा दिया।
लोकसभा चुनाव के लिए सिंधिया को पश्चिमी उत्तर प्रदेश का इंचार्ज बनाया गया लेकिन लोकसभा चुनाव का परिणाम सिंधिया के लिए बेहद कड़वा रहा,उन्हें अपने गढ़ गुना में हार का सामना करना पड़ा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस का सुपड़ा साफ़ हो गया।
ज्योतिरादित्य सिंधिया को एक और झटका तब लगा जब राहुल गांधी ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। राहुल,उनके सबसे बड़े पक्षधर थे और उनके अध्यक्ष पद छोड़ देने से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जो नई पीढ़ी को कांग्रेस में आगे आने ही नहीं देना चाहते हैं ऐसे नेताओं का हौसला और बुलंद हुआ। और मध्यप्रदेश में सिंधिया के सबसे बड़े प्रतिद्वंदी मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने अपने आपसी मतभेद भुलाकर सिंधिया को पार्टी में साइडलाइन करने कि कोशिश और तेज़ कर दी।
सिंधिया ने भी अपने नाराजगी को सार्वजनिक रूप से ज़ाहिर करते हुए उन्होंने आर्टिकल 370 हटाए जाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की और अपने ट्विटर बायो से कांग्रेस को हटा दिया। उन्हें महाराष्ट्र चुनाव के लिए कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया लेकिन चुनाव खत्म होने से पहले वो देश से बाहर निकल गए।किसानों की समस्या को लेकर जब सिंधिया ने सड़क पर उतरने की बात कही तब मध्य प्रदेश कांग्रेस नेताओं की एक बैठक भी हुई,दिखाने की कोशिश की गई सब कुछ ठीक है। लेकिन जब कमलनाथ से पूछा गया कि सिंधिया ने कहा था अगर सरकार किसान कर्जमाफी और अन्य वादों को पूरा नहीं करती तो वो सड़क पर उतर जाएंगे। इसके जवाब में कमलनाथ ने कहा- “तो उतर जाएं”। उन्हें आखरी झटका तब लगा जब उनकी राज्यसभा सीट की मांग को ठुकरा दिया गया और उन्हें मध्य प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने से भी इनकार कर दिया गया।
सिंधिया ने भी अपने नाराजगी को सार्वजनिक रूप से ज़ाहिर करते हुए उन्होंने आर्टिकल 370 हटाए जाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की और अपने ट्विटर बायो से कांग्रेस को हटा दिया। उन्हें महाराष्ट्र चुनाव के लिए कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया लेकिन चुनाव खत्म होने से पहले वो देश से बाहर निकल गए।किसानों की समस्या को लेकर जब सिंधिया ने सड़क पर उतरने की बात कही तब मध्य प्रदेश कांग्रेस नेताओं की एक बैठक भी हुई,दिखाने की कोशिश की गई सब कुछ ठीक है। लेकिन जब कमलनाथ से पूछा गया कि सिंधिया ने कहा था अगर सरकार किसान कर्जमाफी और अन्य वादों को पूरा नहीं करती तो वो सड़क पर उतर जाएंगे। इसके जवाब में कमलनाथ ने कहा- “तो उतर जाएं”। उन्हें आखरी झटका तब लगा जब उनकी राज्यसभा सीट की मांग को ठुकरा दिया गया और उन्हें मध्य प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने से भी इनकार कर दिया गया।
कांग्रेस मेँ फैसले लेने वाले नेताओं की बड़ी फौज हर स्तर पर होने वाली अंदरूनी लड़ाइयों को संभालने में ही लगी रहती है,जबकी हक़ीक़त यह है,कि छोटे-छोटे गुटों मेँ बंट कर आपसी लड़ाई करने वाले इन कांग्रेसियों की जनता के बीच में कोई पकड़ नहीं है लेकिन एक-दूसरे के खिलाफ शिकायत कर बस आलाकमान के नज़र मेँ बने रहना चाहते हैं। ऐसे मेँ जमीनी नेता दरकिनार हो जाते हैं या कर दिए जाते हैं। दूसरी तरफ़ कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की ऊर्जा इन सब बातों में ही खत्म हो जाती है,ऐसे मेँ विपक्ष से मुकाबला तो दूर अपने घर को संभाल पाने मेँ नाकाम दिख रही है।
जिसतरह ज्योतिराज सिंधिया को मध्य प्रदेश कांग्रेस में साइड किया जा रहा था उसे देख कर उनके द्वारा कोई कठोर निर्णय लिया जाना तय था। क्योंकि, राहुल गांधी उनके हिमायती जरूर रहें लेकिन जब स्थिति विपरीत बन रही थी तब राहुल गांधी कहीं नज़र नहीं आए। भाजपा के लिए ये एक बेहतर अवसर था जिसे मध्य प्रदेश के कांग्रेसी नेताओं ने थाल में परोस कर दे दिया, भाजपा ने तनिक देर किए बिना ही लपक लिया,और कर्नाटक के बाद अब मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार को अल्पमत में लाकर सरकार बनाने की स्थिति में हैं।खुशफ़हमी की शिकार कांग्रेस को विपक्ष पर दोष पर मढ़ने के बजाय आत्ममंथन कर भविष्य की रणनीति तय करनी चाहिए, जिसमें जमीन से जुड़े नेताओं को दरकिनार न किया जाय और युवा कार्यकर्ताओं का स्वागत हो।